Factfulness

Factfulness

इंट्रोडक्शन

आगे बढ़ने से पहले, आइये जल्दी से एक टेस्ट लेते हैं. इन् तीन सवालों का जवाब अपने दिमाग में ही दें और अपने जवाबों को याद रखें.

पहला सवाल- पिछले दो दशकों में, बहुत ज्यादा गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या ……. हो चुकी है

  1. लगभग दोगुनी
  2. पहले से ज्यादा या पहले से कम या
  3. आधी?

दूसरा सवाल, दुनिया के कितने, एक साल से छोटे बच्चों को किसी एक ख़ास बीमारी के लिए पहले से ही टीका लगाया जा चुका है?

  1. 20%
  2. 50% या
  3. 80%

तीसरा सवाल, आज दुनिया में कितने लोगों के पास बिजली की सुविधा है?

  1. 20%
  2. 50% या
  3. 80%

क्या आपको अपने जवाब याद हैं? क्या आपके मन में कोई दूसरा जवाब आ रहा है? चलिये, जानते हैं कि यूनाइटेड नेशन स्टैटिक्स (United Nations statistics) के अनुसार सही जवाब क्या हैं, पहले सवाल का जवाब है, ऑप्शन C. पिछले दो दशकों में, बहुत ज्यादा गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या लगभग आधी घट चुकी है.

दूसरे सवाल का जवाब है, ऑप्शन C. एक साल की उम्र के 80% बच्चों को पहले से ही टीका लगाया जा चुका है.

तीसरे सवाल का जवाब है, ऑप्शन C. आज दुनिया में 80% लोग बिजली का उपयोग कर सकते हैं.

आपके कितने जवाब सही निकले? क्या आपके सभी जवाब गलत हैं? अक्सर हैंस रॉसलिंग अपने लेक्चर्स इसी तरह के टेस्ट के साथ शुरू करते हैं.

अपने करियर के शुरू-शुरू में, हैंस इस बात से बहुत निराश हो जाया करते थे कि लोगों का दुनिया को देखने का नजरिया कितना गलत है. वह नाराज़ और गुस्सा थे कि कैसे मीडिया गरीबी और हिंसा को बदत्तर बनाकर दिखाता है.

इसीलिए हैंस रॉसलिंग ने लोगों के दुनिया को देखने के तरीके को बदलने और अपडेट करने के लिए इसे अपने जीवन का मिशन बना लिया. उन्होंने अपने बच्चों, ओला

और एना की मदद से गैपमाइंडर की स्थापना की. यह एक ऐसी आर्गेनाइजेशन है जो आकड़ों को हमारे जीवन में दिखाती है. Gapminder ग्राफ और एनालिसिस को

और भी ज्यादा मजेदार और इफेक्टिव बनाता है.

इस बुक में, आप उन तीन इंस्टिंक्ट (Instinct) जानेंगे जो हम इंसानों के पास होती हैं. जो हैं – गैप इंस्टिक्ट, negativity इंस्टिंक्ट, और स्ट्रेट लाइन इंस्टिंक्ट (Gap Instinct, Negativity Instinct 3ite Straight-Line Instinct) ये तीन इंस्टिंक्ट हमारे दुनिया को जानने-समझने के नज़रिये को धुंधला कर देती हैं.

आइये इन पर एक-एक करके डिस्कस करते हैं.

गैप इंस्टिंक्ट

गैप इंस्टिंक्ट का क्या मतलब होता है? यह हमारी बहुत बड़ी गलतफहमी है कि दुनिया दो भागों में बँटी हुई है“developing 31 developed countries”, “पश्चिमी या वेस्ट के देश और बाकी बचे हुए देश”, अमीर देश और गरीब देश”. ऐसा कुछ नहीं है. कोई फासला या अंतर नहीं है. पिछले कुछ दशकों में दुनिया बदल चुकी है और हमें भी अपनी दुनिया के बारे में सोचने-समझने के तरीके को अपडेट करना चाहिए.

आइये एक नज़र developing और developed देशों पर डालते हैं. एक ग्राफ को इमेजिन कीजिए जिसमें बहुत से सर्कल(Circle) बने हुए हैं. हर एक सर्कल एक देश को दिखाता है. सर्कल का साइज देश की आबादी यानी population को दिखाता है. ग्राफ के लेफ्ट साइड में आप दो बड़े सर्कल देख सकते हैं जो कि इंडिया और चाइना हैं.

y-axis पर, यह 0 से 5 साल की उम्र तक जो बच्चे जिंदा बचे रहते हैं उनका परसेंटेज दिखता है और x-axis पर, ये एक औरत से लगभग कितने बच्चे हैं उस एवरेज नंबर को दिखाता है. जैसा कि आप y-axis पर सबसे नीचे 50% और सबसे ऊपर 100% लिखे हुए का मार्क बना हुआ देख सकते हैं. और x-axis पर आप 8 बच्चों से लेकर 7. 6, 5, 4, 3, 2, और ] तक बने हुए मार्क देख सकते हैं. अब, इमेजिन कीजिये कि आप साफ़ तौर पर दो हिस्से देख सकते हैं. एक हिस्सा ग्राफ के लेफ्ट साइड पर मान लीजिये जिसमें ये developing देश, इंडिया और चाइना हैं. यह दिखाता है कि 5 साल तक की उम्र के सिर्फ 70 % से 80 % बच्चे ही जिंदा रह पाते हैं और यह ये भी दिखाता है कि एक औरत के एवरेज 5 से 7 बच्चे होते हैं.

जबकि, अमेरिका और यूरोप जैसे developed देश ग्राफ से राइट साइड पर दिखाए गए हैं. यहाँ 5 साल तक की उम्र के 90% से 100% बच्चे जिंदा रहते हैं. और यहाँ एक औरत के एवरेज सिर्फ़ 2 से 3 ही बच्चे होते हैं. इसका क्या मतलब है? यह ग्राफ दिखता है कि developing और developed देशों के बीच साफ़ तौर पर एक गैप है.

इस ग्राफ में दिखाया गया डेटा 1965 के समय का लिया गया डेटा है. यह दिखाता है कि 1965 में दुनिया कैसी थी, जो कि 5 दशक पहले की बात है.

हैंस रॉसलिंग ने दुनिया के बारे में हमारी सोच-समझ की स्टडी करने के लिए बच्चों की सेहत यानी चाइल्ड सर्वाइवल के सब्जेक्ट को ही क्यों चुना? ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बच्चे को पालने और बड़ा करने में समाज का योगदान होता है. अगर एक कम्युनिटी में 5 साल से ऊपर की उम्र के सभी बच्चे जिंदा रहते हैं, तो इसका मतलब है कि वहाँ पानी साफ़ है और वहाँ भरपूर खाना और दवाइयाँ आसानी से मिल जाती हैं. वहाँ की माएँ पढ़ी-लिखी हैं और वहाँ प्रेगनेंसी को रोकने के लिए दवाएँ भी मौजूद हैं.

आइये, अब जरा अपडेटेड ग्राफ को देखते हैं. वह ग्राफ जो 2017 में दुनिया के हालात को दिखाता है, जब हैंस रॉसलिंग ने यह बुक लिखी थी. फिर से, ध्यान से सुनें. 2017 में, लगभग ज्यादातर देश ग्राफ की राइट साइड पर आ चुके हैं. मान लीजिए कि वे ग्राफ के राइट साइड पर ऊपर कोने पर चले गए हैं. वहीं लेफ्ट साइड पर, जिसमें हमने developing देशों को रखा था, अब वहाँ कुछ ही देश बाकी रह गए हैं. ज्यादातर देशों को अब developed देशों में गिना जाने लगा है.

इसका सीधा -सा मतलब है कि वह डेटा अब पुराना हो चुका है. वे पहले से ही गलत हैं. हमें अब इनका यूज़ नहीं करना चाहिए. जैसे कि भारत में 5 साल की उम्र तक के 95% बच्चे जिंदा रहते हैं. और एक औरत के एवरेज 2 से 3 ही बच्चे हैं. यह 2017 का डेटा है और अब इंडिया पहले से ही developed देशों की लिस्ट में अच्छे से शामिल है. यह ग्राफ के राइट साइड पर ऊपर कोने पर है.

तो, अगर ये “अमीर और गरीब”, वेस्ट के देश और बाकी के देश” वाले लेबल पहले से ही गलत हैं, तो क्या अब हमें इनका यूज़ करना चाहिए? इस बारे में सही स्टडी करने के लिए हमें क्या यूज़ करना चाहिए ? हमें और ज्यादा लोगों की मदद करने लिए और उन्हें भरपूर खाना, साफ़ पानी, एजुकेशन और हेल्थ केयर यानी स्वास्थ्य सेवा पहुँचाने के लिए क्या यूज़ करना चाहिए?

हैंस ने यह सुझाव दिया है: फोर इनकम लेवल्स (The Four Income Levels) दनिया की आबादी अभी 76 बिलियन है. तो. 7 इंसानों के जैसे फिगर की एक पिक्चर की कल्पना कीजिये और वे chess के टुकड़ों की तरह दिखते हैं. हर एक फिगर 1 बिलियन लोगों को दिखाता है. यहाँ से शुरू होता है फोर लेवल्स का कॉन्सेप्ट. लेवल-1 इनकम में एक बिलियन लोग हैं. यहाँ सिर्फ एक ही chess का टुकड़ा है. लेवल-1 में परिवारों के रोज़ का बजट एक डॉलर per day है. परिवार में कुल पांच बच्चे हैं.पिता किसान और माँ हाउसवाइफ हैं. यहाँ नल के पानी की सुविधा नहीं है.

बच्चों को नंगे पैर चलना पड़ता है और बहुत दूर एक कुँवे से पानी भरकर लाना पड़ता है. वे लकड़ियाँ बटोरकर भी इकठ्ठा करते हैं ताकि इन्हें जलाकर खाना पकाया जा सके. माँ पूरे परिवार के लिए दलिया पकाती है. वे हर रोज़ हर समय के खाने में बस यही दलिया खाते हैं.

जब कभी आंधी आएगी तो सारी फसलें नष्ट हो जाएंगी और परिवार के पास कोई इनकम नहीं रहेगी. वह 6 साल की छोटी बच्ची मर जाएगी क्योंकि उसकी खांसी और कफ के लिए कोई दवा नहीं है. सभी बच्चे कुपोषित हैं, उन्हें भरपूर और अच्छा खाना नहीं मिल पा रहा है. घर के अंदर आग में खाना पकाने की वजह से उनके फेफड़े कमजोर हो गए हैं.

यह बहुत ही गरीबी की हालत है. यही लेवल-1 है. स्टैटिक्स आकड़ों से पता चलता है कि दुनियाँ में लगभग 1 बिलियन लोग इसी तरह जी रहे हैं.

लेवल-2 की इनकम वाले लगभग 3 बिलियन लोग हैं. इनका रोज़ का बजट 4 डॉलर का होता है. ये लोग अंडे और चावल खरीद सकते हैं. ऐसे परिवारों को खाने के लिए फसल नहीं उगानी पड़ती है. पिता के पास एक बाइक मोटरसाइकिल हो सकती है जिसका यूज़ वह अपने काम पर जाने के लिए करते हैं.

लेकिन फिर भी, उनके यहां नल के पानी की कोई सुविधा नहीं होती है. हाँ लेकिन कुछ ही दूरी पर कुँवा जरूर होता है. बच्चों के पास पैरों में पहनने के लिए चप्पलें होती हैं. माँ खाना बनाने के लिए गैस स्टोव का यूज़ करती हैं. घर में अंदर एक लाइट बल्ब भी होता है ताकि बच्चे अपना होमवर्क कर सकें.

पैसे बचाते हैं ताकि वह अपने पूरे परिवार के सोने के लिए एक चटाई, दरी या गद्दा खरीद सके. जीवन बेहतर होता है. लेकिन जब कोई एक भी बच्चा बीमार हो जाए, तो माँ को पैसे उधार लेने पड़ते हैं या फिर पिता को अपनी मोटरसाइकिल बेचनी पड़ती है.

लेवल-3 की इनकम वाले लगभग 2 बिलियन लोग हैं. आज दुनिया भर में, 2 बिलियन लोग रोज के 16 डॉलर के बजट पर अपना जीवन जी रहे हैं. वाह, यह एक बहुत बढ़िया सुधार हुआ है. आखिरकार नल का पानी है और भरोसेमंद बिजली भी है. ऐसे परिवारों के पास फ्रिज होता है जिसमें वे अपना खाना रख सकते हैं और अलग-अलग डिशेस भी खा सकते हैं.

उनके पास एक मोटरसाइकिल भी है जिसका यूज़ माँ दो बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए करती है. माता-पिता दोनों के पास अच्छी सैलरी वाली नौकरियाँ हैं और वे । अपने बच्चों की कॉलेज की पढ़ाई के लिए बचत करते हैं. अगर परिवार में कोई बीमार पड़ता है, तो वे मेडिकल बिल भरने के लिए अपनी बचत का यूज़ कर सकते हैं. या अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर पूरा परिवार हफ्ते की आखिरी छुट्टियों में बीच पर या कहीं घूमने-फिरने जा सकते हैं. लेवल-4 में, 1 बिलियन लोग हैं. ये लोग 64डॉलर के रोज़ के बजट पर रहते हैं. इन परिवारों का रहन-सहन अच्छा-खासा होता है. इनके पास कार होती है. इनके घर में अनेक प्रकार के उपकरण और सामान होते हैं.

माता-पिता की बहुत ज्यादा सैलरी वाली नौकरियाँ होती हैं और बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. ये लोग रोज़ के डॉलर के बजट में रहने की सोच भी नहीं सकते हैं.

आपका परिवार कोन-से लेवल में आता है? क्या यह लेवल 1,2,3, या फिर 4? फिर से, याद रखें कि कोई गैप नहीं है. आपको अपना गैप इंस्टिंक्ट बदलना होगा.आज दुनिया की ज्यादातर आबादी लेवल-2 और लेवल-3 की इनकम में रहती है. सिर्फ 1 बिलियन लोग ही बहुत ज्यादा गरीबी की हालत में रहते हैं. और सिर्फ 1 बिलियन लोग ही बहुत ज्यादा अमीर भी हैं. हम में से ज्यादातर लोग बीच में होते. यहाँ तक कि एक देश या एक स्टेट के अंदर ही लेवल 1, 2, 3, या 4, इनकम वाले परिवार होते हैं. इसलिए अब कोई “वो” और “हम” जैसा कुछ नहीं रहा है. ज्यादातर लोग अब भरपूर खाना, हेल्थ केयर और एजुकेशन का खर्च उठा सकते हैं. अब ज्यादातर आबादी के पास बिजली और साफ़ पानी पहुंच चुका है. क्या आपको नहीं लगता है कि दुनिया एक सुरक्षित और बेहतर जगह बनती जा रही है?

NEGATIVITY इंस्टिंक्ट

अगर ये स्टैटिक्स आपको यकीन नहीं दिला पाये, तो यहाँ कुछ और अच्छी इनफार्मेशन दी गयी हैं. आइये हमारी लिस्ट के अगले इंस्टिंक्ट पर चलते हैं- द negativity इंस्टिंक्ट.

इसका सीधा मतलब यह है कि लोग पॉजिटिव से ज्यादा नेगेटिव चीज़ों को नोटिस करते हैं. हम हमेशा यही लगता है कि दुनिया बदत्तर होते जा रही है. हम अच्छे से ज्यादा बुरा देखना पसंद करते हैं. हमारे लिए पॉजिटिव चीज़ों के बजाय नेगेटिव चीज़ों पर बात करना ज्यादा मज़ेदार होता है. इसीलिए शाम की सभी न्यूज़ अपराधों और किसी क्राइसिस या कमी के बारे में होती हैं.

ठीक है. चलिए ईमानदारी से बात करते हैं. जानवर ज्यादा खतरे में हैं. बर्फ पिघल रही है. अगली शदी तक हमारे समुंद्र लगभग तीन फ़ीट और ऊपर उठ जायेंगे. ओवरफिशिंग और pollution से हमारे समुद्र खराब हो रहे हैं.

2007 में अमेरिकी शेयर बाज़ार की गिरावट चौंकाने वाली थी. बहुत-से लोगों को उनकी नौकरियां, उनके पैसे, उनके घर गवाने पड़े. लेकिन सिस्टम नहीं बदला और यही समस्या फिर से हो सकती है.

हमें आतंकवाद और सीमा या बॉर्डर या बॉर्डर की टेंशन को भी नहीं भूलना चाहिए. एक गहरी सांस लीजिए. सांस अंदर लीजिए और बाहर छोड़िये. हैंस कहते हैं कि अगर हम अभी से कुछ करेंगे, अगर हम सही और सटीक डेटा का यूज़ करेंगे, और अगर अलग-अलग देश आपस मिलकर काम करते हैं, तो हमें अपने समय में शांति, खुशहाली, और साफ़ वातावरण मिल है.

एक ऐसी दुनिया को इमेजिन करें जहाँ एक भी बच्चा मलेरिया से ना मरे, जहाँ कोई सुसाइड बॉम्बर्स न हों, जहाँ जंगली जानवरों के लिए कोई सुरक्षित जगह न बनाई जाए. क्या हम सभी बिल्कुल ऐसा ही नहीं चाहते हैं? आइये अपने स्टैटिक्स को देखते हैं. 30 देशों के लोगों से सवाल पूछा जाता है “आपको क्या लगता है कि दुनिया बदतर हो रही है,

बेहतर हो रही है, या बस वैसी ही है?” 50% से ज्यादा लोगों का जवाब था कि दुनिया बदतर हो रही है. 55% जापानियों का कहना है कि दुनिया बदतर हो रही है. 60% ब्रिटिश भी यही कहते हैं, जबकि 90% Turkey के लोगों का मानना है कि दुनिया इससे ज्यादा बदतर पहले कभी नहीं हुई है.

खैर, हमारा काम यहाँ पर पॉजिटिव चीज़ों के बारे में सोचना है. तो, फिर आइये इस गलतफहमी को दूर करने के लिए स्टैटिक्स का यूज़ करें कि दुनिया दिन पर दिन खराब होती जा रही है. चलिए फिर से गरीबी पर बात करते ये ध्यान में रखें कि हैंस ने जो भी ग्राफ दिखाए हैं, वे सभी यूनाइटेड नेशन्स डेटा के बेसिस पर हैं और आप उन्हें यूनाइटेड नेशंस की ऑफिसियल वैबसाइट पर जाकर मुफ्त में देख सकते हैं.

हम पहले ही कह चुके हैं कि गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या आज दुनिया में लगभग आधी हो चुकि है.

हमारे पास इसका क्या सबूत है? सन 1800 में दुनिया की 85% आबादी की इनकम लेवल-1 में थी. ज्यादातर लोग भूखे थे. खाने के लिए भरपूर खाना नहीं था. यूनाइटेड किंगडम में बच्चों को काम करना पड़ता था ताकि उन्हें खाने के लिए पैसे मिल सकें. एवरेज में ब्रिटिश बच्चे 10 साल की उम्र में काम करना शुरू कर देते हैं.

और हाँ इसके आलावा, सन 1800 में, हैंस के रिश्तेदारों को मिलाकर स्वीडिश की 20% आबादी बेहतर जिंदगी की उम्मीद में अमेरिका चले गये. उनमें से ज्यादातर लोग फिर कभी स्वीडन नहीं लौटे.

फिर से एक ग्राफ को इमेजिन कीजिए. y-axis पर बहुत गरीबी में रहने वाले लोगों का परसेंटेज है. तो, आप देखेंगे कि यहाँ 0% से 50%, से 100% तक के मार्क बने हुए हैं. और X-axis पर, आप साल दिखाई देंगे. x-axis पर साल 1800 से शुरू होते हैं, और फिर उसके बाद 1850, फिर 1900, और 2000.

आप ग्राफ पर देखेंगे कि सन 1800 से 1966 तक पहुँचते हुए, बहुत ज्यादा गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या । धीरे-धीरे घट रही है.चलिए फिर से दोहराते हैं. सन 1800 में बहुत गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 85% से घटकर साल 1966 तक सिर्फ 50% रह गयी है.

अब, 1966 में, एक बहुत बड़ा बदलाव आया. वर्ल्ड वॉर ख़त्म हो चुके हैं. लंबी शांति का समय या दौर है. अब इसे ध्यान से सुनें, 1966 से बहुत ज्यादा गरीबी की दर घटकर 2017 में सिर्फ 9% ही रह गयी है.

इसका मतलब है कि 2017 तक, दुनिया की सिर्फ 9% आबादी ही रोज़ 1 डॉलर बजट पर रह रही है. सबसे अच्छी बात यह है कि पिछले 20 सालों में गरीबी बहुत तेजी से कम हुई है. यह हिस्ट्री के किसी भी समय की तुलना में सबसे तेजी से कम हुई है.

आइये इसे एक बार ध्यान से देखते हैं. 1997 में, इंडिया और चाइना दोनों देशों में वहाँ की 42% आबादी बहुत गरीबी में थी. लेकिन 2017 तक, सिर्फ़ 12% इंडियन ही बहुत गरीब हैं. इसका मतलब है कि 1997 से 2017 तक 270 मिलियन लोग लेवल-2 या लेवल-3 पर आ चुके है. और चाइना में बहुत गरीबी 2017 में घटकर 0.7% ही रह गयी है. इसका मतलब है कि एक बिलियन चीनी लोग ज्यादा गरीबी के हालातों से बाहर आ चुके हैं.

आप 1997 में कितने साल के थे? क्या आपने अपने परिवार के जीवन के रहन-सहन में आये बदलाव को नोटिस किया है? हैंस कहते हैं कि हमें सेलिब्रेट करना चाहिए. हमें खुश होना चाहिए क्योंकि सिर्फ दो दशकों में ही दुनिया की 29% आबादी को बहुत ज्यादा गरीबी से छुटकारा मिल चुका है. आज आपके पास मुस्कुराने और पॉजिटिव रहने के लिए यह एक अच्छा मौका है.

स्ट्रेट लाइन इंस्टिंक्ट

अब, हमारी लिस्ट की आखरी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी या गलत धारणा पर चलते है- द स्ट्रेट-लाइन इंस्टिंक्ट. यह । माना जाता है कि दुनिया की आबादी हमेशा बस बढ़ती ही रहेगी. समय बीतने के साथ ही और ज्यादा बच्चे पैदा होंगे और आख़िरकार यह पृथ्वी हमारी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगी.

क्या आपको भगवान कृष्ण की कहानी याद है? वही कहानी जिसमें वे chessboard में हर एक square पार करने पर दोगुने चावल मांगते हैं? पहले square पर उन्होंने चावल का एक दाना माँगा. दूसरे पर, भगवान कृष्ण के पास पहले से ही दो दाने थे. तीसरे वाले पर, उनके पास पहले से अब तीन दाने थे.

हर एक पार होते square के साथ ही चावल के दानों की संख्या दोगुनी हो जाती है. तो, इसी तरह उनके पास, 8, फिर ]6, फिर 32, फिर 64 दाने हो जाते हैं. Chessboard के आखिरी square पर, भगवान् कृष्ण को 18,446,744,073,709,551,615 चावल के दाने मिले.

स्ट्रेट-लाइन इंस्टिंक्ट का यही मतलब है. हमें लगता है कि ग्राफ पर भी संख्या इसी तरह तेजी से बढ़ेगी.

चलिए ठीक है, अब एक बार फिर से आपकी नॉलेज का टेस्ट लेते हैं. इस सवाल का जवाब दीजिये. यूनाइटेड नेशन्स के स्टैटिक्स के अनुसार, आज दुनिया में 2 बिलियन बच्चे रह रहे हैं. इनकी उम्र 0 से 15 के बीच है. साल 2100 तक यहां कितने बच्चे होंगे? क्या यह A. 4 बिलियन? B. 3 बिलियन? या C. 2 बिलियन?

अगर हम इसे एक ग्राफ पर खींचकर बनाते हैं, तो ऑप्शन A. 4 बिलियन ऊपर को जाती हुई एक सीधी लाइन है. जबकि इसी बीच, ऑप्शन C.2 बिलियन के लिए लाइन ऊपर जा रही है और फिर एक पॉइंट पर जाकर फ्लैट लाइन बन रही है.

आपका जवाब क्या है?

शायद आपने अपना जवाब ऑप्शन A. 4 बिलियन दिया होगा, बिलकुल उन्हीं सोशल साइंस टीचर्स की तरह जो कि हैंस conference में पूछते हैं. जबकि इसी बीच, वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के 26% एक्सपर्ट ने अपना जवाब ऑप्शन C.2 मिलियन दिया.

आइये सही जवाब का खलासा करने के लिए एक बार फिर से यूनाइटेड नेशंस के ग्राफ को देखते हैं. यह दुनिया में 0 से 14 साल की उम्र के बच्चों की आबादी को दिखाता है. यह यूएन के फ्यूचर के लिए लगाए गए अनुमान को भी दिखाता है.

ग्राफ में y-axis पर, आप देख सकते हैं कि 0 से] बिलियन, 2 बिलियन, 3 बिलियन, 4 बिलियन. और x-axis पर, आप सालों को देख सकते हैं, सन 1950 से, 2000, 2050, और फिर 2100.

सही जवाब है ऑप्शन C. सन 2100 तक दुनिया में 0 से 14 साल की उम्र के 2 बिलियन बच्चे होंगे. बिलकुल उतने ही जितने कि आज हैं. सही ग्राफ स्ट्रेट लाइन नहीं है. 2000 से 2010 के बीच, बढ़ने की रेट रुक गयी. जैसा कि हम बोल रहे थे कि यह पहले से ही हो रहा है. दुनिया की आबादी हमेशा के लिए बढ़ती नहीं रहेगी. साल बीतने के साथ-साथ बच्चों के पैदा होने की संख्या दोगुनी नहीं बढती रहेगी.

यूनाइटेड नेशंस ने अपना अनुमान बताया है कि साल 2100 तक दुनिया की आबादी 10 बिलियन से 12 बिलियन ही रहेगी और आगे भी इसी तरह रहेगी. एक्सपर्ट्स इस ट्रेंड को “फ्लैटनिंग ऑफ़ द कर्व” (“flattening of the curve”) कहते हैं.

यह क्यों हो रहा है? ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि, आज, लोग ज्यादा पड़े-लिखे हैं. हम खेती-किसानी से डिजिटल युग में चले गए हैं, इसलिए परिवारों को अब खेती में मदद के लिए कई बच्चों की जरुरत नहीं है. बेहतर हेल्थ केयर facility हैं इसलिए बच्चों की डेथ रेट कम है. माता-पिता को ज्यादा बच्चों की जरूरत नहीं है.

आज, हमारे पास सेक्स एजुकेशन और प्रेगनेंसी को रोकने के तरीकों तक ज्यादा पहुँच है. माता-पिता कम बच्चे। चाहते हैं ताकि वे बच्चों को बेहतर एजुकेशन और उनकी अच्छी देखभाल कर सकें. बच्चे healthy और अच्छे से पढ़-लिख जाएँ इसके लिए फैमली planning होती है.

इस तरह, स्ट्रेट-लाइन इंस्टिंक्ट गलत है.

1965 में, एक औरत के एवरेज में 5 बच्चे थे. लेकिन 2017 में, यह रेट घटकर एक सिर्फ़ 2 बच्चों पर रह गयी. यूएन ने अनुमान लगाकर बताया है कि साल 2100 तक और उसके बाद भी इसी तरह रहेगा.

अगर हम अपने बच्चों को एजुकेट करना जारी रखते हैं, अगर हम हेल्थ केयर और फैमिली प्लानिंग में सुधार करते हैं, तो यूएन का अनुमान सही होगा. हर माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर खुशहाल जीवन देना चाहते हैं, है ना? इस तरह हम इस प्लेनेट पर अपनी सभ्यता को बनाये रख सकते हैं. हमें साइंस फिक्शन फिल्मों की तरह भागकर Mars पर नहीं जाना पड़ेगा.

CONCLUSION

इस बुक में, आपने तीन बड़ी गलत धारणाओं या गलतफहमियों के बारे में जाना। इन्हें गैप इंस्टिंक्ट, negativity इंस्टिंक्ट, और स्ट्रेट-लाइन इंस्टिंक्ट कहते हैं.

आपने जाना कि दुनिया दो हिस्सों में नहीं बँटी हुई है. यहाँ कोई अमीर और गरीब देश नहीं हैं. developing और developed वर्ल्ड वाले लेबल पुराने हो चुके हैं. आपको भी दुनिया को देखने-समझने का अपना नज़रिया बदलना होगा.

अगर आपके पास लगन और पॉजिटिव एटीट्यूड है, तो आप अपने परिवार को लेवल-1 इनकम से लेवल-2, लेवल-3. और यहाँ तक कि लेवल-4 पर भी ले जा सकते हैं.

आपने यह भी सीखा कि आपको नेगेटिव नहीं होना चाहिए. आप न्यूज़ में जो हेडलाइंस देखते हैं, वह सच्चाई को काफी बड़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है. दुनिया में गरीबी कम है और क्राइम भी कम होती है.

नयी पीढ़ी के रूप में हमारे पास दुनिया को सुरक्षित और बेहतर जगह बनाने की ताकत है.

अगर हम सभी लोगों की मान्यताओं यानी बिलीफ सिस्टम के बारे में ज्यादा समझ रखते हैं, अगर हम एक-दूसरे के साथ और ज्यादा दयालु होना चुनते हैं, अगर हम अपने एनवायरनमेंट की ज्यादा देखभाल करना चुनते हैं, तो तभी हमारे बच्चे शांति और अच्छे माहौल का आनंद ले सकेंगे. इस बुक में आपने स्ट्रेट-लाइन इंस्टिंक्ट के बारे में भी जाना. दुनिया की आबादी हमेशा बढ़ती ही नहीं रहेगी. हम उस फ्लैटलाइन पर पहुंच चुके हैं जहां जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या हर साल एक जैसी ही रहती है. साल 2075 तक 17 बिलियन लोग हो जायेंगे और अगर हम सही फैसले चुनते हैं तो यह संख्या वहीं रुक जाएगी.

अब जब आपके पास यह सब जानकारी है, तो आप इसके साथ क्या करेंगे? अभी आप अपना जो भी करियर बना रहे हैं, आप उस बदलाव में योगदान कर सकते हैं जो हम दुनिया में होते हुए देखना चाहते हैं. चाहे आप एक टीचर हों, डॉक्टर हों, इंजीनियर, प्रोग्रामर, कारपेंटर या जो भी काम करते हों, आप कुछ कर सकते है.

समय के साथ आप भी माता-पिता बनेंगे. आप अपने बच्चों को जो बनाना चाहते हैं उनके लिए जैसा भविष्य चाहते हैं, उसे बना सकते हैं. इस बारे में सोचिये.

आप यू ट्यूब पर हैंस की टेड टॉक वीडियो भी देख सकते हैं. वह एक बहुत ही मजाकिया और अच्छे टीचर हैं. अपनी आर्गेनाईजेशन गैपमाइंडर की तरह, हैंस जानकारी को ज्यादा रोमांचक और दिलचस्प बना देते हैं.

हैंस की खराब सेहत की वजह से 2017 में उनकी मौत हो गयी. लेकिन वह अपनी इस छोटी-सी कोशिश से दुनिया बदल रहे हैं और आप भी ऐसा कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Emotional Intelligence 2.0 Previous post Emotional Intelligence 2.0
Failing Forward Next post Failing Forward